Tuesday, July 1, 2025

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एथेनॉल के लिए बढ़ रही है मक्के की मांग

मक्का तीसरा सबसे अधिक उगाया जाने वाला अनाज है। यह अनाज सिर्फ इंसानों के खाने के काम में नहीं आता है बल्कि यह पोल्ट्री इंडस्ट्री की जान रही है। परंतु पिछले कुछ सालों में मक्का एनर्जी क्रॉप की तरह तेजी से उभर रहा है। पेट्रोल एथेनॉल मिश्रण योजना (ईबीपी) के तहत भारी मात्रा में एथेनॉल उत्पादन की आवश्यकता है। एथेनॉल उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में एथेनॉल का महत्व बढ़ गया है।

भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर) के निदेशक डॉ. हनुमान सहाय जाट ने यूपीडीए की इंटरनेशनल समिट 3.0 में बताया कि एथेनॉल की बढ़ती आवश्यकता को देखते हुए मक्का की अधिक उत्पादन की जरूरत है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार की एथेनॉल मिश्रण लक्ष्य को पाने के लिए आईआईएमआर 15 राज्यों के 75 जिलों के 15 जल ग्रहण क्षेत्रों में उन्नत बीज किस्मों के साथ इसका प्रसार कर रहा है। भारत सरकार ने “एथेनॉल उद्योगों के जल ग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन में वृद्धि” नाम से एक प्रोजेक्ट शुरू किया है जिसे आईसीएआर के अधीन आईआईएमआर संचालित कर रही है।

यूएस एथेनॉल योजना में सहयोग को है तैयार

भारत में एथेनॉल उत्पादन की काफी संभावना है। भारत में इसके लिए पर्याप्त संसाधन भी उपलब्ध है। यूपीडीए भारत में एथेनॉल उत्पादन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यूएस ग्रेन काउंसिल के साउथ एशिया डायरेक्टर रीस एच कैनेडी ने नई दिल्ली के होटल हयात सेंट्रिक में 19 जुलाई को आयोजित यूपीडीए इंटरनेशनल समिट 3.0 में कहा कि हम भारत में एथेनॉल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए सभी प्रकार के सहयोग करने को तैयार हैं। हम अपने सामर्थ्य के मुताबिक यहां के किसानों के लिए यूपीडीए के साथ अपनी तकनीकी और विशेषज्ञता उपलब्ध करायेंगे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अमेरिका भारत में एथेनॉल एक्सपोर्ट करने को भी तैयार है।

किसान से प्लांट तक बनेगा ईको सिस्टम

भारत सरकार के एथेनॉल मिश्रण लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अल्कोहल उत्पादन इकाईयां कई तरह के प्रयास कर रही हैं। वर्ष 2025-26 तक एथेनॉल मिश्रण के 20 प्रतिशत लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तथ्य रॉ मैटेरियल्स है। यूपीडीए अपने स्तर पर भारत सरकार के इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक रोडमैप बनाकर उस पर काम कर रहा है। एस. के. शुक्ला यूपीडीए के प्रेसीडेंट ने नई दिल्ली में आयोजित यूपीडीए इंटरनेशल समिट में 19 जुलाई को कहा कि मक्का एथेनॉल के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इससे किसानों को भी रोजगार और आमदनी में ईजाफा होगा। उन्होंने बताया कि यूपीडीए यह प्रयास कर रहा है कि इसकी खेती जीरो मैन पावर पर आधारित हो। इसके लिए एक ईको सिस्टम तैयार करने में यूपीडीए अपनी पूरी कोशिश कर रही है। ईको सिस्टम के अंतर्गत मशीनीकरण किया जायेगा जिसमें न्यूमैटिक प्लांटर, ड्रोन, हार्वेस्टिंग मशीन तथा लॉजिस्टिक सिस्टम का उपयोग किय जायेगा। किसान के खेत से पैदा होने वाला मक्का सीधे प्लांट तक ले जाने की व्यवस्था बनाई जायेगी। यह ईकोसिस्टम तीन-चार वर्ष में यूपी में तैयार हो सकता है। उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी आईजीएल गोरखपुर ने यूपी के संतकबीरनगर जनपद में किसानों के साथ मिलकर मक्के की खेती कराई थी। इसमें किसानों की लागत 50 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर आई थी और उन्हें 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर का लाभ हुआ था। उन्होंने बताया कि मक्के का उत्पादन तीन से चार गुना बढ़ाया जा सकता है और इसकी लागत भी मशीनीकरण द्वारा कम की जा सकती है।

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