सुप्रीम कोर्ट ने औद्योगिक शराब के उत्पादन को लेकर केंद्र सरकार को झटका देते हुए राज्य सरकारों के पक्ष में फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संवैधानिक पीठ ने सात जजों की पीठ का फैसला पलटते हुए 23 अक्टूबर को कहा कि औद्योगिक अल्कोहल पर कानून बनाने की राज्य की शक्ति को नहीं छीना जा सकता। पीठ ने कहा कि केंद्र के पास औद्योगिक एल्कोहल के उत्पादन पर विनियामक शक्ति का अभाव है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ ने 8:1 के बहुमत से फैसला दिया। उल्लेखनीय है कि साल 1997 में सात जजों की पीठ ने अपने फैसले में केंद्र सरकार को औद्योगिक एल्कोहल के उत्पादन को विनियमित करने का अधिकार दिया था। साल 2010 में इस मामले को नौ जजों की पीठ के पास समीक्षा के लिए भेजा गया। नौ जजों की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि औद्योगिक एल्कोहल मानव उपभोग के लिए नहीं है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत राज्य सूची की प्रविष्टि 8, राज्यों को मादक मदिरा के निर्माण, परिवहन, खरीद और बिक्री पर कानून बनाने का अधिकार देती है। वहीं केंद्र सरकार के अधिकार वाले उद्योगों की सूची संघ सूची की प्रविष्टि 52 और समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 में दी गई है। समवर्ती सूची के विषयों पर केंद्र और राज्य विधानमंडल, दोनों को कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन केंद्रीय कानून को राज्य के कानून पर प्राथमिकता देने का प्रावधान है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ जजों की पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस उज्जल भुइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल रहे। इस फैसले पर असहमति जताते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि केवल केंद्र के पास ही औद्योगिक शराब को विनियमित करने की विधायी शक्ति होगी। सुप्रीम कोर्ट ने 1990 के सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ के सिंथेटिक्स और केमिकल्स मामले में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया। 1990 में संवैधानिक पीठ ने केंद्र के पक्ष में फैसला सुनाया था। संवैधानिक पीठ की ओर से कहा गया था कि राज्य समवर्ती सूची के तहत भी औद्योगिक शराब को विनियमित करने का दावा नहीं कर सकते हैं।
नहीं छीनी जा सकती राज्य की शक्ति
सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि औद्योगिक अल्कोहल पर कानून बनाने के राज्य के अधिकार को छीना नहीं जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों को औद्योगिक एल्कोहल के उत्पादन और सप्लाई को लेकर भी नियम बनाने का अधिकार है।
2010 में आया था यह फैसला
इस मामले को 2010 में नौ जजों की पीठ के पास समीक्षा के लिए भेजा गया था। इस साल अप्रैल में छह दिन लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
राज्य सरकारों को इस फैसले से होगा फायदा
यह फैसला राज्य सरकारों को औद्योगिक अल्कोहल पर कर लगाने में सक्षम बनाकर उनके राजस्व को बढ़ाएगा। यह नया राजस्व स्रोत उन राज्यों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो बजट घाटे से जूझ रहे हैं तथा हाल की कर कटौती और आर्थिक चुनौतियों के कारण जीएसटी और आयकर जैसे पारंपरिक स्रोतों से राजस्व में कमी आ रही है।
सात जजों का फैसला 34 साल बाद पलटा
सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1990 में स्पष्ट किया था कि मादक शराब केवल उन अल्कोहल का संदर्भ देती है, जो नशे के लिए उपयोग किए जाते हैं। औद्योगिक शराब को राज्यों द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने 34 साल बाद यह फैसला पलट दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि जीएसटी लागू होने के बाद आय के स्रोत के रूप में औद्योगिक शराब पर टैक्स लगाने का अधिकार काफी अहम हो गया है।
अल्कोहल वेस्टेज के मामले हो जायेंगे पुनर्जीवित
औद्योगिक अल्कोहल पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्यों को पूर्ण अधिकार मिल गया है। राज्य सरकार औद्योगिक अल्कोहल पर अब टैक्स लगा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाईकोर्ट इलाहाबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज शर्मा और अभिषेक शर्मा ने अपनी प्रतिक्रिया में बताया कि औद्योगिक उत्पादन इकाईयों के अल्कोहल वेस्टेज पर राज्य सरकार द्वारा लगाये गये जुर्माने के विरूद्ध कई याचिकाएं न्यायालयों में स्थगित हैं। इस आदेश के बाद औद्योगिक अल्कोहल के संचय छीजन और मार्ग नयन छीजन से सम्बन्धित मामले न्यायालयों में पुनर्जीवित हो जायेंगी। न्यायालयों द्वारा राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर होने के कारण ऐसे मामलों को निरस्त भी कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि यदि औद्योगिक अल्कोहल के छीजन के वास्तविक आधार हैं तो उन मामलों में राज्यों को चुनौती दी जा सकती है।