उत्तर प्रदेश देश में सबसे अधिक एल्कोहल का उत्पादन करता है। भारत सरकार की एथेनॉल लेंडिंग योजना (ईबीपी) में भी सबसे अधिक सहयोग उत्तर प्रदेश द्वारा किया जाता है। प्रदेश में लगभग 90 डिस्टलरियों में एल्कोहल का उत्पादन होता है। जिनमें से 70 इकाइयां एथेनॉल की आपूर्ति करती हैं। एल्कोहल को ही एथेनॉल भी कहा जाता है। एल्कोहल से शराब भी बनाई जाती है और इसी एल्कोहल को पेट्रोल में मिश्रण के लिए भी आपूर्ति किया जाता है। शराब निर्माण में एल्कोहल की गुणवत्ता और उसकी तीव्रता महत्त्वपूर्ण होता है। कई अलग-अलग फीड स्टॉक से अल्कोहल बनता है।
कई समस्याओं का समाधान है एथेनॉल एथेनॉल
मिश्रण के बाद पेट्रोल के कंज्यूम होने पर प्रदूषण के उत्सर्जन में कमी आती है। एथेनॉल भारत सरकार और राज्यों के लिए महत्त्वपूर्ण उत्पाद बन चुका है। इससे कई समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। गन्ना किसानों के मूल्य भुगतान की समस्या से निजात दिलाने हेतु चीनी मिलों की मदद के लिए वर्ष 2019 में भारत सरकार द्वारा इस योजना पर गंभीरता से काम शुरू किया गया था। धीरे-धीरे एथेनॉल बढ़ते प्रदूषण, बेरोजगारी और किसानों की आमदनी के लिए महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गया है। भारत सरकार द्वारा कच्चे तेल के लिए लगभग 22 लाख करोड़ रुपये का विदेशी मुद्रा व्यय किया जाता है। एथेनॉल मिश्रण से विदेशी मुद्रा की लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की बचत हुई है। इस योजना से किसानों को लगभग 85 हजार करोड़ रुपये अब तक प्राप्त हो चुके हैं। एथेनॉल योजना से होने वाले लाभ को देखते हुए इसमें कई तरह के नवाचार भी सामने आए हैं। इसका उत्पादन गन्ना के उपोत्पाद मोलासेस से शुरू हुआ था, जो बी-हैवी मोलासेस से आगे बढ़ते हुए केन जूस तक पहुंच गया है।
गन्ने की सीमित उपलब्धता को देखते हुए इसके विकल्प के रूप में चावल से एथेनॉल उत्पादन की योजना लाई गई थी, लेकिन जल्द ही यह पता चल गया कि चावल की पर्याप्त उपलब्धता संभव नहीं है। इसके पीछे का कारण पर्यावरण और इसका प्रमुख खाद्यान्न होना था। शीघ्र ही एथेनॉल के स्रोत के रूप में मक्के को लाया गया जोकि कच्चे माल के रूप में एक बड़ी संभावना के रूप में सामने आया है। मक्का पर्यावरण की दृष्टि से, जो कम पानी और सभी तरह की जलवायु में उत्पादन की विशेषता के कारण निर्विवाद फसल है। हालांकि, मक्के के पारंपरिक उपभोक्ता उपयोक्ता पोल्ट्री इंडस्ट्री एथेनॉल के लिए मक्के के प्रयोग से अपनी असुविधा जता रही हैं। पोल्ट्री उद्योग का कहना है कि मक्क्का के एथेनॉल के कच्चे माल के रूप में प्रयोग होने के बाद से इसकी उपलब्धता में जहां कमी आई है वहीं इसके दाम में भी बढ़ोत्तरी हुई है। लगभग ₹2200 की एमएसपी से सदैव कम मूल्य पर उपलब्ध होने वाला मक्का 40-50% महंगे दामों पर मिल रहा है।
उत्तर प्रदेश में इस एल्कोहल सत्र (1 दिसंबर 2023 से 30 नवंबर 2024) में सितंबर माह तक लगभग 70 डिस्टिलरियों ने 73.29 करोड़ लीटर एथेनॉल का उत्पादन किया है। एथेनॉल उत्पादन में उत्पादन इकाइयों सी-हैवी मोलासेस, बी-हैवी मोलासेस, केनजूस सीरप तथा ग्रेन का उपयोग कर रही हैं। इकाइयों ने ग्रेन से 35.32 करोड़ लीटर एथेनॉल का उत्पादन किया है। ग्रेन के अंतर्गत चावल और मक्का शामिल है। केन जूस अथवा शुगर सीरप से 2.57 करोड़ लीटर, 19.30 करोड़ लीटर बी-हैवी मोलासेस से तथा 18.64 करोड़ लीटर सी-हैवी मोलासेस से एथेनॉल बनाई गई है। राज्य की उत्पादन इकाइयों ने सितंबर माह तक 85.47 करोड़ लीटर एथेनॉल की ओएमसीज (ऑयल मार्केटिंग कंपनी) को एथेनॉल की आपूर्ति की है। प्रदेश के बाहर कुल निर्यात 35.39 करोड़ लीटर का हुआ है जबकि प्रदेश में इसकी बिक्री 50 करोड़ लीटर से ज्यादा की हुई है। ग्रेन से इकाइयों द्वारा कुल 38.62 करोड़ लीटर की बिक्री की गई है। बी-हैवी शीरे से 26.47 करोड़ लीटर और सी-हैवी मोलासेस से 20.30 करोड़ लीटर की बिक्री हुई है। इस दौरान केन जूस से 7.68 लाख लीटर की ही बिक्री हो पाई है। डिस्टिलरियों ने उत्पादन से अधिक एथेनॉल की बिक्री की है। विगत सत्र के अवशेष एथेनॉल भी इकाइयों की बिक्री में शामिल हैं।