आलू से बायो एथेनॉल बनाने के लिए केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) शिमला आलू की नई किस्में विकसित करेगा। सीपीआरआई के वैज्ञानिक आलू से एथेनॉल बनाने का सफल प्रयोग कर चुके हैं। मौजूदा डॉ. ब्रजेश सिंह समय में देश में सबसे अधिक एथेनॉल गन्ने से बनाया जा रहा है, लेकिन गन्ने का व्यावसायिक उत्पादन देश में मूल रूप से चीनी के लिए किया जा रहा है। एथेनॉल की बढ़ती मांग को देखते हुए आलू से एथेनॉल बनने के लिए सीपीआरआई में परीक्षण किए गए हैं। सीपीआरआई के फसल दैहिकी जैव रसायन एवं फसलोत्तर तकनीकी विभाग के अध्यक्ष डॉ. दिनेश कुमार और उनके सहयोगी डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने बायो एथेनॉल बनाने में सक्षम आलू की किस्मों को चिह्नित कर बायो एथेनॉल तैयार किया है। अब संस्थान आलू की नई किस्में विकसित करेगा। एथेनॉल बनने से आलू उत्पादकों की आय बढ़ेगी। सीपीआरआई जब तक नई किस्में विकसित नहीं करता, तब तक खराब आलू से एथेनॉल बनाया जाएगा। देश में होने वाले कुल उत्पादन का करीब 15 फीसदी आलू विभिन्न कारणों से खराब हो जाता है। बीमारी लगने से खराब फसल, खोदाई के दौरान निकलने वाला कटा हुआ आलू और बाजार में मांग कम होने से इकठ्ठा होने वाला अतिरिक्त आलू एथेनॉल बनाने में प्रयोग हो सकेगा।
सीपीआरआई निदेशक डॉ. ब्रजेश सिंह के मुताबिक आलू से एथेनॉल बनाने को लेकर संस्थान में किए गए परीक्षण सफल रहे हैं। खराब होने वाली आलू की 15 फीसदी फसल एथेनॉल बनाने में इस्तेमाल हो जाएगी। सीपीआरआई अब इसके लिए सहायक आलू की नई किस्में विकसित करेगा। चीन के बाद भारत का आलू उत्पादन में दूसरा स्थान है। वैश्विक आलू उत्पादन का 15 प्रतिशत भारत में हो रहा है। प्रदेश में 14,000 हेक्टेयर में आलू की खेती कर दो लाख टन उत्पादन हो रहा है।