Sunday, June 22, 2025

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नये ब्रांड और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा

अच्छा स्वाद पाने के लिए कितना भी खर्च हो जाए कोई फिक्र नहीं है। बशर्ते जेब में पर्याप्त धन हो। स्वाद संतुष्टि से जुड़ा होता है। उपभोक्ता का विकास हो रहा है क्योंकि भारत सरकार के डेटा के मुताबिक आमदनी में बढ़ोतरी हो रही है। शराब भी अब उपभोक्ता सामग्री में अपना स्थान बढ़ाता जा रहा है। लोग अब झिझक को हटाकर मदिरापान को विशेषकर महानगरों में आम उपभोग वस्तु की तरह उपयोग कर रहे है। सरकार पहले मदिरा निर्माण के लिए कठिन नियम बनाये थे जिसके कारण कम पूंजी वाले उद्यमी मदिरा निर्माण में कदम नहीं रख पाते थे। नियमों में ढील के बाद सभी राज्यों में मदिरा बीयर और वाइन निर्माण की इकाईयों में बढ़ोतरी हो रही है। मदिरा निर्माता अपने ब्रांड के रेसिपी अथवा ब्लैंड को अन्य ब्रांडों से भिन्न बताकर उपभोक्ताओं को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं।

राज्य सरकारें मदिरा व्यवसाय को नियंत्रण करती हैं। कंपनियों के ब्रांड के नाम और अन्य लीजेंड में समरूपता को रोकने के लिए उन्हें स्वयं रजिस्ट्रेशन और अप्रूवल की अनुमति देते हैं। उत्तर प्रदेश में 2500 से अधिक ब्रांड के मदिरा, बीयर और वाइन उपलब्ध हैं। कई बार लोगों को लगता है कि अल्कोहल को फर्मेंट कर तथा डिस्टिल्ड कर अल्कोहल बन जाता होगा। हालाकि अल्कोहल निर्माण का पारंपरिक तरीका यही है। इस क्षेत्र में हो रहे नित्य नये शोध के कारण इनग्रेडिएंट्स अल्कोहल निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मदिरा निर्माण में इनग्रेडिएंट्स के पश्चात मैचुरेशन, फ्लेवर आदि भी इसके टेस्ट में बदलाव लाते हैं। ग्लोबस ने तीन नये ब्रांडों को लांच किया है। एबीडी भी स्पेशल जिन लांच की है। पहले से इन कंपनियों के ब्राण्ड मौजूद हैं लेकिन उपभोक्ता को कुछ मोर (ज्यादा) चाहिए, इसलिए और भी कंपनियां सदैव नये ब्राण्ड लांच करती रहती हैं।

मदिरा सेवन में बार और काकटेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। काकटेल के लिए जिन और वोदका बेस अल्कोहल होता है जिसके पश्चात दूसरे अल्कोहल की श्रेणियां मिक्स की जाती हैं। बीयर भी स्प्रिट की तरह हेरिटेज श्रेणी में कभी कभार मिलने पर स्प्रिट से भी महंगी रेयरेस्ट श्रेणी में बिकते हैं। आलसोप्स आर्टिक एल नामक बीयर की बोतल 4.69 करोड़ रुपये की है। स्पेस में मदिरा के साथ रूसी वैज्ञानिक बीयर को भी 2006 में बनाये थे। अल्कोहल में बढ़ती प्रतिस्पर्धा को स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनाये रखने का दायित्व राज्य सरकारों का है। सरकारों के निरंतर इनफोर्समेंट के बावजूद अवैध शराब का कारोबार होता है। यूरो मॉनीटर के मुताबिक अवैध शराब कुल शराब उपभोग का 25 फीसदी है जो भारत ही नहीं पूरी दुनिया में फैला हुआ है।

यूपीडीए अल्कोहल उत्पादन बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाता है। यूपीडीए द्वारा उत्पादन बढ़ाने के लिए कई देशों की तकनीक को अपनाने के लिए उनसे समझौता भी किये गये हैं। अगले माह जुलाई में होने वाला सेमीनार अल्कोहल उत्पादन में वृद्धि को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। एनएसआई आईआईटी के साथ मिलकर अल्कोहल निर्माण में नये शोध करने जा रही है। हालाकि यह शोध बायोफ्यूल को ध्यान में रखकर किया जायेगा। अल्कोहल उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि के लिए होने वाले प्रयासों के साथ ही पोल्यूशन कंट्रोल पर भी कोशिश की जाती है। अल्कोहल को प्रदूषण नियंत्रण के लिए पेट्रोल में ब्लेंड किया जा रहा है। अल्कोहल निर्माण से होने वाले प्रदूषण नियंत्रण पर भी सरकार और संस्थाओं पर पूरा जोर रहता है। इंडियन एक्जीबिशन सर्विसेस के एक्सपों में आई हुई कंपनियों की तकनीक एनवायरमेंटल सस्टेनेबिलिटी पर फोकस कर रही थी। प्रतिस्पर्धा स्वस्थ होनी चाहिए उसमें किसी तरह का सामाजिक, व्यवहारिक और आर्थिक क्षति किसी का भी नहीं होना चाहिए।

Editorial
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The Aabkari(Abkari) Times magazine occupies a unique niche in the Indian media landscape. As the only Hindi monthly magazine dedicated to alcohol, liquor, excise, and allied industries, it caters to a specific audience with a specialized knowledge base.

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